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सरबजीत को इतनी तवज्जो क्यों?
- सुहैल हलीम, बीबीसी संवाददाता, दिल्ली
Source: http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2013/05/130504_sarabjit_analysis_aa.shtml?ocid=socialflow_facebook_hindi

सरबजीत तो अब इस दुनिया में नहीं रहे, लेकिन उनकी मौत को लेकर भारत में जिस तरह की ज़बरदस्त प्रतिक्रिया देखने को मिली है, उससे उनकी क्लिक करें ज़िंदगी और मौत की गुत्थी और उलझ गई है.

पाकिस्तानी जेल में हमले के बाद दम तोड़ने वाले भारतीय कैदी क्लिक करें सरबजीत सिंह की जिंदगी के दो पहलू हैं. एक वो जो हम जानते हैं और दूसरा वो जो छिपा हुआ है या फिर जो अस्तित्व में ही नहीं है.

तो सरबजीत कौन थे? वो या तो एक साधारण किसान या मज़दूर थे जो सरहद पार करके पाकिस्तान पहुंच गए थे और वहां उन्हें गिरफ़्तार करके एक झूठे मुकदमे में फंसाया गया.

या फिर वो शराब के मामूली तस्कर थे जैसा कि अखबारों के अनुसार उन्होंने गिरफ्तारी के बाद पाकिस्तानी पुलिस को बताया था. लेकिन भारतीय उपमहाद्वीप में पुलिस किसी से भी कोई जुर्म कबूल करवा सकती है, लिहाजा इस बयान की सच्चाई पर पूरी तरह यकीन नहीं किया जा सकता है.

और तीसरा पहलू ये कि वो संभवतः भारतीय जासूस थे, जिन्होंने पाकिस्तान में धमाके किए थे और इस जुर्म के लिए उन्हें मौत की सज़ा सुनाई गई.

आम कैदी ‘राष्ट्रीय नायक’??

इनका मुकदमा सुप्रीम कोर्ट तक गया और बाद में राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने उनकी दया याचिका खारिज कर दी. मतलब अगर उन पर बम धमाकों के आरोप सही थे, तो वो एक ‘चरमपंथी’ थे.

लेकिन वो खुद हमेशा अपनी बेगुनाही का दावा करते रहे और जाहिर है कि भारत सरकार ने कभी उन्हें अपना जासूस नहीं माना.

अब दो सवाल उठते हैं. एक तो ये कि उन्हें क्यों कत्ल किया है. इसका जवाब शायद उस न्यायिक जांच में मिल जाए, जिसका आदेश पाकिस्तानी पंजाब के मुख्यमंत्री ने दिया है.

दूसरा पहलू ये है कि पाकिस्तानी की जेल में बंद एक भारतीय कैदी से राष्ट्रीय नायक तक का सफर उन्होंने कब तय किया.

जहां तक मुझे मामूल है जेल में कातिलाना हमले से पहले ये रुतबा उन्हें कभी नहीं दिया गया था. सरबजीत के साथ ज्यादती हुई, इससे तो इनकार नहीं किया जा सकता है.

उनके परिवार के दुख में शामिल होना इंसानी तकाजा है, लेकिन उनकी मौत की खबर आने के बाद जो कुछ भारत में हुआ है, उसे समझना भी आसान नहीं है.

तो बीते एक हफ्ते में ऐसा क्या हुआ कि प्रधानमंत्री ने उन्हें ‘भारत का बहादुर लाल’ करार दे दिया. उनके शव को लाने के लिए विशेष विमान भेजा गया.

देश का शीर्ष नेतृत्व पीड़ित परिवार से मिलने के लिए क्लिक करें लाइन लगा कर खड़ा हो गया. पंजाब की सरकार ने उन्हें पूरे राजकीय सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी और उनके परिवार को एक करोड़ रुपये की आर्थिक सहायता का भी एलान किया.

उनकी बेटियों को सरकारी नौकरी देने का वादा किया गया और पंजाब में तीन दिन के शोक का एलान किया गया है.

आम तौर पर ये सब उन लोगों के लिए किया जाता है जिन्होंने देश के लिए अमूल्य योगदान दिया हो, किसी उद्देश्य के लिए लड़े हो या फिर देश के लिए लड़ते हुए अपनी जान कुरबान कर दी हो.

लेकिन हमेशा नहीं. क्योंकि ये लोकतंत्र है जो राजनीति से संचालित होती है और रानजीति कभी मौका परस्ती से ज़्यादा दूर नहीं होती है.

इसलिए दिसंबर में जब एक मासूम लड़की के सामूहिक बलात्कार और मौत ने देश के जमीर को झंकझोड़ा और गुस्से में लोग सड़कों पर उतर आए तो केंद्र और राज्य सरकार ने मुआवज़े के लिए सरकारी खज़ाने का मुंह खोल दिया.

लेकिन जब बलात्कार का शिकार पांच साल की दो बच्चियां दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में भर्ती थी तो उन्हें देखने के लिए कोई नहीं गया.

उनका इलाज सरकारी अस्पताल के गंदे बिस्तरों पर ही हुआ और फिर उनके बेबस मां बाप उन्हें उनकी गुमनाम जिंदगी में वापस ले गए.

सरबजीत की मौत पर गुस्से और दुख का इज़हार समझ में आता है, लेकिन ये समझ से परे है कि उनकी ज़िंदगी कैसे किसी अन्य आम भारतीय की जिंदगी से कीमती थी?


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