💥 ਮੋਦੀ ਜੀ ਕਦੋਂ ਤੋਂ ‘ਰੂਦਨਜੀਵੀ’ ਹੋ ਗਏ ਤੁਸੀਂ?
- 2002 'ਚ ਗੋਧਰਾ ਕਾਂਡ ਦੌਰਾਨ ਨਹੀਂ ਰੋਏ
- ਰਾਮ ਮੰਦਿਰ ਆਂਦੋਲਨ ਦੇ ਚਲਦੇ ਦੇ ਚਲਦੇ ਮਾਰੇ ਗਏ ਲੋਕਾਂ ਲਈ ਨਹੀਂ ਰੋਏ
- ਕਿਸਾਨਾਂ ਦੀ ਮੌਤ 'ਤੇ ਨਹੀਂ ਰੋਏ
- ਕਸ਼ਮੀਰ ਨੂੰ ਜੇਲ ਬਣਾਕੇ ਨਹੀਂ ਰੋਏ
- ਪੂਰਬੀ ਦਿੱਲੀ ਦੇ ਦੰਗਿਆਂ ਵਲ਼ੇ ਨਹੀਂ ਰੋਏ
- ਨੋਟਬੰਦੀ ਦੌਰਾਨ ਲਾਈਨ 'ਚ ਲੱਗੇ ਲੋਕਾਂ ਦੀ ਮੌਤ 'ਤੇ ਨਹੀਂ ਰੋਏ
- ਲੌਕਡਾਊਨ ਦੌਰਾਨ ਮਜਦੂਰਾਂ ਦੀ ਬੇਬਸੀ 'ਤੇ ਨਹੀਂ ਰੋਏ
ਜਦੋਂ ਰੋਣਾ ਸੀ, ਉਦੋਂ ਨਹੀਂ ਰੋਏ, ਰੋਏ ਉਹ ਵੀ ਸਾਂਸਦ ਦੀ ਵਿਦਾਈ
'ਤੇ!
ਵਾਹ ਸਾਹਿਬ!
क्या बात है बहुत रूलम रूलाई चल रही है? ‘रूदनजीवी’ कब
से हो गए आप?
- 2002 में नहीं रोये,
- राम मंदिर आंदोलन के चलते मारे गए लोगों के लिए नहीं रोये,
- किसानों की मौतों पर नहीं रोये, कश्मीर को जेल बनाकर नहीं रोये,
- पूर्वी दिल्ली के दंगों के वक्त नहीं रोये,
- नोटबंदी में लाइन में लगकर मरने वालों के लिए नहीं रोये,
- लॉकडाउन में मजदूरों की बेबसी पर नहीं रोये।
जब रोना था, जब नहीं रोये। रोये भी तो एक सांसद की विदाई के वक्त!
गुलाम नबी आजाद ‘जी’ कहीं नहीं जा रहे हैं। दोबारा चुनकर
वापस आ जाएंगे। अगर नबी ‘जी’ से इतनी ही मोहब्बत है तो भाजपा से उन्हें
राज्यसभा ले आइए ना। मगर आप ऐसा नहीं करेंगे। पार्टी लाइन से आप अलग चल ही
नहीं सकते।
इतनी भावुकता कहां से लाते हैं आप? अरे साहब! ये देश ऐसा
ही है। सड़क पर पड़े इंसान की मदद करते हुए कोई यह नहीं देखता कि उसका धर्म
क्या है? जाति क्या है?
देखा नहीं लॉकडाउन के वक्त जब अपने ही अपने को कंधा देने
से कतरा गए थे, किसने जनाजों को कंधा दिया था?
आप का रोना ठीक नहीं है। जब राजा ही रोने लगे तो प्रजा
कहां जाएगी साहेब? आप तो उसे ठीक से रोने भी नहीं देते। अगर कोई रोता है तो
आपका आईटी सेल उसे टुकड़े-टुकड़े गैंग, देश विरोधी, पाकिस्तान परस्त,
खालिस्तानी बता देता है। कुछ दे नहीं सकते तो कम से कम रोने की आजादी तो दे
दीजिए साहेब।
आपको तो कुछ भी कहने की आजादी है। आप तो ‘मन की बात’ की
कह कर अपना दिल हल्का कर लेते हैं। आप हंस सकते हैं, दूसरों पर कटाक्ष कर
सकते हैं, रो भी सकते हैं। दूसरा ऐसा करे तो ईडी, सीबीआई पीछे लग जाती है
साहेब। आपको तो पता ही होगा अभिसार शर्मा और न्यूज क्लिक के दफ्तरों पर ईडी
ने छापे डाले हैं। वे भी तो अपनी बात कह रहे हैं। कहने दीजिए न साहेब। अपनी
बात कहना लोकतंत्र का हिस्सा है। कहीं ऐसा तो नहीं आप भी मानते हैं कि देश
में कुछ ज्यादा ही लोकतंत्र आ गया है?